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       [TODAY छत्तीसगढ़] / भारत में पानी की समस्या के विकराल रूप के छोटे से मुखड़े की कुछ तस्वीरें आपके सामने हैं। विश्व युद्ध की नौबत तो नहीं आई, गृह युद्ध अब ये हकीकत है। अगर आप सोच रहें हैं की पानी की समस्या सरकारी है और सरकार उसे दूर करेगी तो आप सौ फ़ीसदी गलत हैं। अगर आप ये सोच रहें हैं की टैंकर और सैकड़ों गैलनों की कतारों से पानी की समस्या का समाधान कर लेंगे तो आप तीन सौ फ़ीसदी गलत हैं। हर हाथ को काम देती ये तस्वीरें भारत के किसी बियाबान की नहीं हैं, बल्कि 'सबका साथ-सबका विकास' को दर्शाती ये तस्वीरें बिलासपुर जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर ग्राम  खैराडीह की हैं। हर उम्र-वर्ग के हाथ में डिब्बा देखकर आपको भ्रम हो सकता है, आस-पास रोजगार चलने का। आश्चर्य तब होता है जब हकीकत सामने आती है। 
     तखतपुर विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा ग्राम खैराडीह कोपरा जलाशय के किनारे बसा एक छोटा सा गाँव हैं,  जिसकी आबादी करीब साढ़े चार सौ है। गाँव में रहने वालों को वोट देने का अधिकार तो है लेकिन मूलभूत सुविधाओं को पाने का हक नहीं। खैराडीह में कई पीढ़ियों ने जल संकट को देखा है, संघर्ष आज भी जारी है। 'दिया तले अन्धेरा' इस कहावत को चरितार्थ होते इस गाँव में किसी भी वक्त देखा जा सकता है। पानी की समस्या से निजात पाने वैसे तो कई बोर गाँव में दिखाई देते हैं लेकिन उनमें से अधिकाँश पानी नहीं उगलते, जो बचे हैं उनका पानी किसी काम लायक नहीं। गाँव के हेण्डपम्प से निकलता पानी ना प्यास बुझा पाता है ना उससे पेट की आग बुझाने का सामान पक पाता है। लिहाजा भूख-प्यास मिटाने के लिए पानी का इंतज़ाम करने गाँव के लोग कोपरा जलाशय पहुँचते हैं। गाँव में किसी के घर शादी हो या फिर दूसरे मांगलिक काम मेहमानों की खातिरदारी का इंतज़ाम भी कोपरा का पानी ही करता है।     
पैदल-साइकिल या फिर मोटरसाइकिल में टंगे डिब्बों का रंग और आकार अलग हो सकता है मगर एक ही समस्या के समाधान के लिए उन्हें घर से लेकर निकले लोग बताते हैं बारिश और सर्दी में फिर भी राहत है मगर गर्मी के शुरू होते ही आँखों के सामने त्रासदी की एक भयावह हकीकत दिखाई पड़ने लगती है। गाँव में पानी के संकट को लेकर कइयों बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों और कलेक्टर से शिकायत करने की बात कहने वाले ग्रामीण बताते हैं ' जब तक कोपरा जलाशय में पानी है तब तक प्यास और भूख मिटाने का इंतज़ाम हो रहा है। जलाशय में पानी ना होने की स्थिति में टैंकर से पानी मंगवाना पड़ता है। जल संकट के उस दौर में सकरी नगर पंचायत में कइयों बार गुहार लगानी होती है तब कहीं गांव तक टैंकर पहुंचता है। कोपरा जलाशय के इर्द-गिर्द का नज़ारा प्रवासी पक्षियों के साथ आयातित लोगों को हैरत में डाल सकता है लेकिन स्थानीय पक्षियों के अलाव लोगों को बेजुबान समस्या का दर्द मालुम है। खैराडीह के दिलीप यादव दिन में तीन दफा खुद पानी लेने जलाशय पहुँचते हैं। उन्होंने गर्मी में जल संकट के जिस हालात को बताया वो इंसानी रिश्तों में दरार डालने वाला था। बताते हैं गर्मी में जब कोपरा पूरी तरफ से सूख जाता तब पानी के लिए यहां-वहां भटकना पड़ता है। सकरी से पानी का टैंकर जैसे ही गाँव की सरहद में पहुंचता है तमाम रिश्ते दरकने लगते हैं और रुकते ही बिखर जाते हैं। 
दशकों से पानी के संकट से जूझते खैराडीह के लोगों की समस्याओं से निकलकर आती आवाज से कोई राजनैतिक नारा नहीं टपकता, समस्या बरसों पुरानी हो चली है इसलिए डिब्बा थामें लोगों को दर्द का ज्यादा अहसास नहीं होता।  ग्रामीण बताते हैं वे सियासत के फरेबी चेहरे और प्रशासन की उदासीनता से वाकिफ हैं इसलिए उन्होंने इस त्रासदी को भगवान भरोसे छोड़ दिया है,  देखते हैं इस खबर के जरिये ग्रामीणों की सालों पुरानी समस्या का कोई स्थाई हल निकल पाता है या फिर जिंदगी की कुछ जरूरी जरूरतों को पूरा करने का काम का भविष्य में भी कोपरा ही करता रहेगा।   
[TODAY छत्तीसगढ़] /  पद्मश्री पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी अब इस दुनिया में नहीं रहे। शुक्रवार की सुबह बिलासपुर एक निजी अस्पताल में उन्होने अंतिम सांस ली। पंडित श्यामलाल के खोने से पूरा साहित्य, पत्रकारिता जगत के अलावा  बिलासपुर स्तब्ध है। पिछले कुछ दिनों से पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी  वेंटीलेटर पर थे। आज सुबह उन्होेने करीब आठ बजकर 40 मिनट पर अंतिम सांस ली । छत्तीसगढ़ के प्रख्यात साहित्यकार और राजभाषा आयोग के पहले अध्यक्ष रहे पद्मश्री पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी ने अपने जीवनकाल में समाज को काफी कुछ दिया, उन्होंने हमेशा सामाजिक सरोकार और जनहित के मसलों पर मुखर होकर अपनी बात रखी। वे जनसत्ता और नवभारत टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों के प्रतिनिधि रहे। सन 1940-41 से उन्होंने  लेखन आरंभ किया। उनका कहानी संग्रह ‘भोलवा भोलाराम’ और  उनकी रचनाओं में ‘बेटी के बिदा’ काफी प्रसिद्ध हुई। 
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