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सरकारों की आवाजाही बड़े तजुर्बों का मौका..

छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ दिनों में राज्य सरकार ने अधिकारियों की कुर्सियां जिस तरह से बदली हैं, और जिस तरह आने वाले और कुछ दिनों में बदली जाने की उम्मीद है, उस नौकरशाही को बहुत से सबक लेने की जरूरत है। दरअसल जब किसी एक पार्टी की सत्ता लगातार पन्द्रह बरस तक जारी रहती है, तो निर्वाचित लोगों के तहत काम करने वाले अफसरों का मिजाज भी एक ऐसी निरंतरता का हो जाता है कि उन्हें एक ही मुख्यमंत्री और एक ही पार्टी के मातहत हमेशा काम जारी रखना है। लंबी चली ऐसी सरकार के तहत कुछ चुनिंदा अफसर अधिक ताकतवर हो जाते हैं, और मुख्यमंत्री को लगातार पन्द्रह बरस मिल जाएं, तो फिर सरकार में बैठे लोग यह सोच भी नहीं पाते कि किसी दिन दूसरी पार्टी की सरकार आ सकती है, या कि दूसरे मुख्यमंत्री बन सकते हैं। नतीजा यह होता है कि सरकार चलाने में जो सावधानी होनी चाहिए वह खत्म हो जाती है, नियम-कानून के लिए सम्मान घट जाता है, और लोग इस अंदाज में काम करने लगते हैं कि वे मानो अमरबूटी खाकर आए हों। इसी का नतीजा है कि इस सरकार के आते ही बहुत से अफसरों को हटाने की जरूरत पड़ी, और बहुत से अफसरों के कामकाज के खिलाफ जांच की जरूरत भी अब दिख रही है। लोकतंत्र में सरकार में पार्टी या मुखिया के बदलने का एक फायदा यह भी होता है कि सरकार चला रहे अफसर अपने को आजीवन सत्तारूढ़ मानने की खुशफहमी नहीं पालते जो कि रमन सिंह सरकार में आ गई थी। इसी वजह से अफसरों ने बहुत से ऐसे काम किए जिनके चलते वे कानूनी दिक्कतों में भी पड़ सकते हैं, और उनकी बाकी नौकरी दागदार भी हो गई है।
आज इस मौके पर पूरी नौकरशाही को यह सबक भी लेना चाहिए कि राजनीतिक मुखियाओं के लिए गलत काम नहीं करने चाहिए, और अपने निर्वाचित मंत्रियों को भी गलत काम से रोकना चाहिए। एक दूसरी जरूरी बात यह भी है कि राज्य में रिटायर्ड अफसरों को संवैधानिक कुर्सियों पर मनोनीत करने का सिलसिला खत्म होना चाहिए। इस राज्य में आयोगों और ऐसी दूसरी जगहों पर रिटायर्ड अफसरों को बिठाने का सिलसिला इतना लंबा चल रहा है और वह इतना चौड़ा फैल चुका है कि मानो कोई भी अफसर रिटायर ही नहीं होते। नतीजा यह होता है कि नौकरी के आखिरी कुछ बरस ऐसे अफसर अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने में लगे रहते हैं ताकि रिटायर होने के बाद सहूलियतों और मोटी तनख्वाह वाली कुर्सी मिल जाए, बंगला-गाड़ी जारी रहे। यही हाल हाईकोर्ट से रिटायर होने वाले जजों का भी होता है। इस बात पर एक कानूनी रोक लगनी चाहिए कि जिस राज्य से अफसर या जज रिटायर हों, उन्हें उस राज्य में किसी पद पर मनोनीत न किया जाए। इस बारे में हम पहले भी बहुत बार लिख चुके हैं कि यह सिलसिला सरकार में गलत कामों को बढ़ाने वाला रहता है, और रिटायर्ड लोग अगर इतने ही होनहार और विशेषज्ञ हैं तो उन्हें दूसरे किसी राज्य में भी जगह मिल सकती है। कुल मिलाकर आज इस मुद्दे पर लिखने का मकसद यह है कि तमाम अफसर आज की नौबत को देखकर यह सबक जरूर ले लें कि लोकतंत्र में न किसी पार्टी का राज स्थाई होता है, और न ही कोई नेता स्थाई होते हैं। इसलिए सबको यह मानकर काम करना चाहिए कि अगली सरकार आकर पिछली सरकार के सारे कामकाज की जांच करवा सकती है। नई सरकार भी, इसके निर्वाचित नेता भी पुराने तजुर्बे से बहुत कुछ सीख सकते हैं कि क्या-क्या नहीं करना चाहिए, कैसे-कैसे नहीं करना चाहिए।

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