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मिठाई नहीं, तो कम से कम मिक्सचर दे देते ..

जब से होश संभाला है और राजनीति की कुछ समझ आई है, तब से इस माह की 10 तारीख तक मैंने एक कार्यकाल को छोड़ अन्य कार्यकालों में अपने शहर बिलासपुर को मंत्री विहीन नहीं देखा है, अपनी राजनैतिक सक्रियता, जागरुकता के लिए विख्यात इस शहर का विधायक मंत्री अवश्य रहा है, जिले के दूसरे विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़कर जीतने वाले शहर के अन्य नेता भी मंत्री रहे हैं।
अविभाजित मध्यप्रदेश की बात करें, तो एक समय में इस शहर के चार नेता मंत्री थे, छोटा शहर था, इसलिए सभी प्रमुख मोहल्लों में एक मंत्री का निवास था, अलग अलग दरबार थे, छत्तीसगढ़ बनने और फिर राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद भी यही स्थिति रही है। शहर विधायक पिछले 15 साल से मंत्री रहे, इसके अलावा दो तीन प्रमुख पदों पर भी जिले के विधायक ही रहे।
शहर और जिले को इतना अधिक महत्व देने का कारण इस शहर की राजनैतिक तासीर रही है, शहर में कुछ ऐसी बात है कि यहां जो हवा बनती है, वह बहुत दूर तक जाती है, जहां तक मुझे याद है, सिर्फ एक कार्यकाल 1998 - 2003 को छोड़कर यहां जिस पार्टी का विधायक बना है, अविभाजित मध्यप्रदेश और फिर छत्तीसगढ़ में उसी पार्टी की सरकार बनी है। संभवत: इसीलिए कांग्रेस और भाजपा के लिए बिलासपुर महत्वपूर्ण रहा है।
यहां आजादी के बाद से कांग्रेस तो पहले नंबर पर रही ही है, कांग्रेस के केंद्रीय स्तर के नेता इस शहर और यहां के जनप्रतिनिधियों को महत्व देते ही रहे हैं, भाजपा की शीर्ष यात्रा की शुरुआत भी यहीं से हुई है, भाजपा के केंद्रीय नेताओं ने भी इसी शहर को केंद्र बनाकर आगे बढ़ने की शुरुआत की है।
इतनी जानकारी इसलिए दे रहा हूं, क्योंकि हाल ही में राज्य में भाजपा की जगह भारी बहुमत के साथ कांग्रेस की सरकार बनी है, मंत्रिमंडल का गठन भी हो गया है, लेकिन उसमें बिलासपुर शहर के विधायक के अलावा जिले के दूसरे विधायक का नाम नहीं है, पहली बार शहर और जिला मंत्रीविहीन हो गया है।
बिलासपुर जिले में कांग्रेस के दो विधायक हैं, शहर से शैलेष पाण्डेय और तखतपुर से श्रीमती रश्मि सिंह, लेकिन इन दोनों को मंत्री नहीं बनाया गया है, इस तरह शहर और जिला इस मामले में सूना हो गया है, अब शहर में मंत्रियों का अकाल ही रहेगा।
कहने वाले कह रहे हैं कि का बात है, काहे एतना नाराज हो गए भैया हमारे शहर और जिले को मिठाई नहीं देते, कोई बात नहीं, कम से कम मिक्सचर तो दे देना था, हमारे विधायकों को बड़ा मंत्री नहीं बनाते, कम से कम छोटे मंत्री बना देना था, हम भी संतुष्ट रहते, लोकसभा चुनाव में सोचते कि इन्होंने इतना दिया है, तो हम भी कुछ दे दें.... 

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