उनके संघर्ष में टीएस सिंहदेव ने भी पूरा साथ दिया, मुख्यमंत्री बनने के वे भी स्वाभाविक हकदार थे, परन्तु चर्चा है कि उनका " सिंह " होना भारी पड़ गया, संभवत: यह सोच लिया गया कि कहीं भाजपाई सिंहों को ठीक करने के मामले में वे उदारता न बरत बैठें , वैसे भी मुख्यमंत्री तो दो में से किसी एक नेता को ही बनाया जा सकता था, इसलिए उन्हें त्याग की राह पकड़नी पड़ी।
हालांकि इन दोनों नेताओं में जो सामंजस्य है, उसे देखते हुए सिंहदेव का कद भी मुख्यमंत्री से कम नहीं रहेगा, यह तय माना जा रहा है। इन नेताओं की संघर्षशीलता, परिपक्वता और सभी को साथ लेकर चलने की स्वाभाविक प्रवृत्ति को देखते हुए यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि कांग्रेस की यह सरकार पांच साल पूरे दमखम के साथ चलेगी, दो तिहाई बहुमत के दबाव के कारण सरकार में खींचतान भी नहीं होगी, लेकिन सरकार को जनता की उन अपेक्षाओं को पूरा करना होगा, जिसके लिए बहुमत मिला है, साथ ही उन गलतियों से बचना पड़ेगा, जिनके कारण भाजपा की दुर्गति हुई है।
चुनाव के दौरान कांग्रेस ने किसानों का कर्ज माफ करने और बिजली बिल हाफ करने संबंधी बड़ा वादा किया, पार्टी के चुनाव जीतते ही सरकार बनने के पहले इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है, संभवत: केबिनेट की बैठक होते ही इस प्रस्ताव पर मुहर लग सकती है, इसके अलावा छत्तीसगढ़ में बेलगाम अफसरशाही, भ्रष्टाचार पर लगाम कसना इस सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है। प्रदेश में भाजपा की दुर्गति के प्रमुख कारणों में से एक भ्रष्टाचार और अफसरशाही ही रहा है।
15 साल के भाजपा शासन में अफसरों ने जमकर भ्रष्टाचार किया, पकड़े गए तो सस्पेंड हुए, लेकिन फिर लक्ष्मी मैया की कृपा से पदोन्नति के साथ बहाल भी हो गए और फिर भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए । शहरी और ग्रामीण इलाकों में सड़कें बनीं, पर बनते ही उधड़ गईं और फिर उन्हें उधड़ने के लायक बना दिया गया, ओवरब्रिज बने, लेकिन मापदंडों का कहीं पालन नहीं किया गया, अरबों रुपए खर्च कर बांध बनाए गए, लेकिन उनमें पानी ही नहीं भरा, नेता विकास विकास चीखते रहे, आंकड़ेबाजी करते रहे, लेकिन आम लोगों को कहीं वह विकास नजर नहीं आया।
अफसरशाही इस कदर हावी रही, कि आम लोग तो दूर, स्वयं सत्ताधारी दल भाजपा के कार्यकर्ता अफसरों के चक्कर लगाते रहे, लेकिन उनका भी काम नहीं हुआ। नेता अखबारों में " अफसरों को फटकार " , " नोटिस, कड़ी कार्रवाई की चेतावनी " संबंधी खबरें छपवाते रहे, लेकिन उनके साथ बैठकर न जाने क्या क्या गुल भी खिलाते रहे। इन सभी बातों का नतीजा यह हुआ कि नेताओं से जनता के साथ भाजपा के कार्यकर्ता भी नाराज हो गए, फिर चुनाव में सभी ने मिलकर 65 प्लस का दावा करने वाले नेताओं को 15 तक नीचे उतार दिया तो कांग्रेस को वादा पूरा करने के साथ भ्रष्टाचार और अफसरशाही पर भी लगाम कसना होगा, अब फटकार, नोटिस, चेतावनी से काम नहीं चलेगा, सीधे कार्रवाई करना होगा, विकास के कागजी दावों से ऊपर उठकर धरातल पर विकास दिखाना होगा। इसके अलावा नक्सली समस्या, अपराध की रोकथाम जैसे मुद्दे तो अस्तित्व में हैं ही, जिन समस्याओं को समाप्त करना भी सरकार की बड़ी चुनौतियों में शामिल है।
यदि सरकार इन समस्याओं को दूर करने में सफल हुई, तो इसकी लोकप्रियता में कमी नहीं आएगी। वर्तमान में जिस तेवर के कांग्रेस नेताओं के हाथ में कमान है, उसे देखते हुए उम्मीद यही है कि वे इन चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करेंगे, वरन् इसमें सफलता भी प्राप्त करेंगे।
- @ व्योमकेशउप सम्पादक, दैनिक हरिभूमि
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