[TODAY छत्तीसगढ़ ] / देश में इन दिनों एक अलग किस्म की भीड़ इकठ्ठी हो चुकी है, ये अराजक भीड़ सिर्फ मूर्तियों को अपना निशाना नहीं बना रही बल्कि समाज की एकता और राष्ट्र की अखंडता को खंडित करने पर आमादा है। इस तरह की भीड़ के उस हिस्से से छत्तीसगढ़ का बिलासपुर जिला भी अब अछूता नहीं रहा, हालांकि प्रतिमाओं से छेड़छाड़ की घटनाये पहले भी सामने आती रहीं हैं। इस बार बिलासपुर जिले के कोटा विकासखंड के ग्राम बानाबेल में चौराहे पर लगी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा को अज्ञात अराजक तत्वों ने तोड़ दिया, महात्मा गांधी के धड़ से सर को अलग करने वालों के चेहरे कैसे हैं मुझे नहीं मालूम।
कल रतनपुर केंदा मार्ग से अमरकंटक जाते वक्त मैंने बानाबेल में सड़क किनारे गांधी को तड़पता हुआ देखा, चौराहे पर गांधी बिना सर के केवल धड़ लिए छटपटा रहे थे। उन्हें किसी गैर ने नहीं बल्कि अपनों ने ही फिर एक बार मारा था, वैसे इस देश में गांधी रोज मारे जा रहें हैं। कभी मूर्तियां तोड़कर, कभी विचारों के जरिये। मैं जब इस गाँव से गुजरा तो अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था, चौराहे पर खंडित गांधी अब किसी को देख पाने की स्थिति में नहीं थे। इस बीच गाँव की एक गली से दो छोटी बच्चिया मुझे आती दिखाई पड़ी। मैंने उन्हें रोका, बड़ी मुश्किल से वो बच्चियाँ रुकीं और बात करने के लिए तैयार हुईं। उन्होंने बताया दो दिन पहले 'कौनों गांधी के मुड़ी ला तोड़ दिए हे' ! गांधी की टूटी हुई मुड़ी कहाँ है उन्हें खबर नहीं, हाँ उन बच्चियों ने मेरे आग्रह पर एक बोरे का इंतजाम किया और खंडित प्रतिमा को ढांक कर अपने रास्ते चलीं गईं। मैं भी कुछ देर रूककर आगे की ओर बढ़ गया लेकिन ये हादसे भविष्य के लिए बड़ी अनहोनी का संकेत हैं। दो दिन तक पेंड्रा-अमरकंटक को रतनपुर के रास्ते जोड़ने वाले मार्ग पर गांधी केवल धड़ लिए पड़े रहे मगर किसी को शर्म नहीं आई, ना कोफ़्त हुई उन लोगो को जो दिखावे के लिए ही सही गाहे-बगाहे 'महात्मा गाँधी अमर रहें' का नारा लगाते हैं।
मैं बानाबेल से अमरकंटक पहुँचने और लौटते वक्त भी रह-रहकर ये सोचता रहा की पागलपन न पहले ख़त्म हुआ था और न आगे होगा। काल का पहिया यूँ ही घूमता रहेगा, क्यूंकि जब सजीव द्रोपदी को नहीं बख्शा गया तो गूंगी बहरी मूर्तियों की क्या बिसात है ? मूर्तियों का गिराया जाना महज़ किसी पत्थर की निर्जीव प्रतिमा को ख़त्म किया जाना नहीं है बल्कि वह उस विचार, उस मूल्य को ज़मींदोज करने की कोशिश है, जिसका प्रतिनिधित्व वह प्रतिमा करती है।
कोई भी राष्ट्र या समाज अपने निर्माताओं और विचारकों की प्रतिमाएं उनके आदर्शों व विचारों को सदियों तक जिंदा बनाये रखने के लिए करती हैं ताकि आने वाली पीढ़ियों को उनसे अवगत कराया जा सके लेकिन आने वाली पीढ़ियों के बीच कुछ ऐसे भी हैं जो इन प्रतिमाओं, उनके विचारों से इत्तेफाक नहीं रखते। ऐसे लोगों को हम अक्सर अराजक या फिर पागल या नशेड़ी कहकर ये मान लेते हैं की जो हुआ वो जानबूझकर किया गया कृत्य नहीं था लेकिन हम गलत है।
मैंने बिलासपुर कोटा मार्ग पर ग्राम गनियारी के चौराहे में लगी चंद्रशेखर आजाद की एक प्रतिमा को भी कुछ समय पहले तस्वीर के माध्यम से दिखाया था, करीब एक दशक से उस प्रतिमा का हाथ टूटा हुआ है, गाँव के ही किसी भद्र व्यक्ति की करतूत होगी लेकिन कइयों बार की मेरी कोशिश ने ना प्रशासन की नीद में खलल डाला ना किसी जनप्रतिनिधि को शर्म आई। इस बार आजाद के बाद बारी थी गांधी की सो उनका सर ही धड़ से अलग कर दिया गया, भविष्य में किसी और की बारी होगी । बस गाँव, जिले का नाम बदला हुआ होगा।
मैंने कहीं पढ़ा था "गांधी को मारने वाले गोडसे की चाहे जितनी मूर्तियां बना लें, वे गोडसे में प्राण नहीं फूंक सकते और गांधी को वे चाहे जितनी गोलियां मारें, गांधी अब भी सांस लेते हैं वो कभी मर नहीं सकते।" वैसे भी अब भारत में मूर्तियों का तोड़ा जाना कोई नया अनुभव नहीं है, पर यह काम हमेशा हमलावरों ने ही किया है। मध्यकाल में ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया से हमलावर भारत में आए और उन्होंने इस देश के मंदिरों में लगी मूर्तियों को बेरहमी से तोड़ा। उनके इस उन्मादी धार्मिक, सांस्कृतिक व वैचारिक हमले के निशान आज भी पूरे देश में बिखरे हुए हैं। 90 के दशक में बाबरी मस्जिद ढांचे को तोड़ते हुए देखा गया और उसका विवाद व उन्माद आज भी देश को अपनी लपेट में लिए हुए है। पिछले दिनों त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति और तमिलनाडु में तमिलों के दलित नेता पेरियार की मूर्ति को तोड़ा जाना भी उसी उन्माद का विस्तार है, जिसका असर उत्तर प्रदेश में भी दिखाई दिया और वहां चार जगह दलित नेता डॉ. आंबेडकर की मूतियों को तोड़ा गया। प्रतिक्रिया में पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक के नेता डॉ. श्यामा प्रसाद की मूर्ति पर हमला हुआ, इन सबके बीच राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी नहीं बख्शा गया और केरल के कन्नूर जिले में उनकी प्रतिमा से भी छेड़छाड़ की गई।
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