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डॉक्टर को इंसान ही रहने दें, भगवान मत बनाइये - डॉक्टर रायजादा


TODAY छत्तीसगढ़  / शशि कोन्हेर / बिलासपुर के युवा योग्य एवं प्रतिभावान,और असीम संभावनाओं वाले चिकित्सक डॉक्टर अभिजीत रायजादा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वे इस समय में आई एम ए के बिलासपुर अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने अपने एक वीडियो में दिल को छू जाने वाली और दिमाग में समा जाने वाली कुछ ऐसी बातें कहीं हैं जिन्हें खारिज कतई नहीं किया जा सकता। इस वीडियो में कहीं गई, उनकी एक-एक बात ध्यान से सुनने, मनन करने और मानने लायक है। 

                                              

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हालांकि वह कहते हैं कि डॉक्टर कोई भगवान नहीं होते..! लेकिन पूरे देश और इसी तरह बिलासपुर में भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो उनके विचारों से इत्तेफाक न रखते हुए, अभी भी डॉक्टरों को, भगवान का ही दर्जा दिया करते हैं । डॉक्टरों को भगवान मानने का यह विचार हमें अपनी तीन चार पीढ़ियों से पारंपरिक रूप से मिला हुआ है। और इसे बदला भी नहीं जा सकता। क्योंकि लगातार कई पीढ़ियों से डाक्टरों को भगवान मानने की हमारी आदत अब हमारा संस्कार बन चुकी है। और लोग जिस तरह भगवान से,अपनी गलतियों , अपने सुख-दुख और स्वास्थ्य को लेकर दया-मया की अपेक्षा रखते हैं। कुछ वैसी ही उम्मीद, हम सब डॉक्टरों से भी लगा बैठते हैं। डॉक्टर अभिजीत रायजादा ने बहुत अच्छी-अच्छी बातें कहीं हैं। लेकिन हर किसी बात में या हर किसी कार्य में मीन-मेख निकालने वाले हम सरीखे पेशागत, छिद्रान्वेषी लोग भी समालोचना की अपनी आदतों से बाज नहीं आते। बहरहाल, डाक्टर रायजादा जी की बात से असहमत होने का कोई सवाल ही नहीं उठता। लेकिन उन्होंने बस एक कमी की है.. और वह यह कि उनके विचारों में केवल और केवल चिकित्सकों का पक्ष ही रखा गया है। मरीज और उनके परिजनों की अस्पताल में इलाज के दौरान की मानसिकता पर उन्होंने शायद गौर नहीं किया है। मरीज हमेशा ही अस्पताल में या चिकित्सकों के पास पूरी तरह स्वस्थ होने की अभिलाषा में  ही जाता है। हालांकि वो यह भी यह जानता है कि जीवन और मृत्यु की तरह बेहतर स्वास्थ्य भी पूरी तरह ईश्वर की कृपा पर ही अलंबित है। लेकिन ईश्वर के तुरंत बाद अगर उसने किसी को स्थान दिया है तो वह हमारे चिकित्सक और चिकित्सा कर्मी ही हैं। लेकिन बीते कुछ सालों से चिकित्सकों और मरीजों के बीच, या कहना चाहिए चिकित्सकों और मरीजों के परिजनों के बीच भक्त और भगवान का जो मर्यादित रिश्ता बरसों से चलता आया  है, वह कुछ नाजुक होता चला जा रहा है। और ऐसा क्यों हो रहा है..?  इसकी चिंता समाज के साथ ही चिकित्सकों को भी करनी चाहिए। इस नाजुक रिश्ते को जोड़ने वाला धागा जिन कारणों से कमजोर होता जा रहा है, वह वास्तव में चिंतनीय है। चिकित्सकीय कार्य तथा इसी तरह चिकित्सक ही ईश्वर के बाद दूसरे वह शख्स रहते हैं, जिन पर लगभग हर कोई अपने जीवन की डोर मजबूत करने की उम्मीद लगा बैठता है। और इसलिए उनके मन में हर चिकित्सक के लिए एक अलग तरह का ऐसा श्रद्धा भाव, सम्मान का भाव बना रहता है, जो दूसरे किसी के लिए नहीं रहता। लेकिन, हम सबके मन में इस भाव का कैनवास जिस तरह कुछ अर्से से धुंधला हो रहा है उसकी चिंता हमारे समाज के साथ ही चिकित्सक वर्ग को भी करनी चाहिए।

पूरा देश इस बात को मान रहा है कि आज अगर भारत की तरह का 135 करोड़ की आबादी (और अमेरिका ब्रिटेन इटली जापान तथा रूस की तुलना में बहुत कम चिकित्सकीय संसाधनों) वाला देश, जान और माल...? के तमाम नुकसान के बावजूद अगर कोविड-19 जैसी जानलेवा महामारी से सुरक्षित है, तो इसके पीछे चिकित्सकों, चिकित्सा कर्मियों सरकार के नुमाइंदों,शासन के अधिकारियों, पदाधिकारियों नगर निगम के अधिकारियों और प्रशासन के अधिकारियों को ही शत-प्रतिशत श्रेय जाता है। जिस देश में टी बी और  वात-पित्त-कफ जैसी सामान्य बीमारी से भी लंबी संख्या में मौतें हो रही है, वहां कोविड-19 सरीखी महामारी से अगर (जैसे तैसे भी) हम निपट पाए हैं तो, केवल और केवल चिकित्सकों के कारण। इस पूरी जंग में चिकित्सकों ने लीडर का काम किया है। वहीं प्रशासन ने उनके पीछे पीछे उनके कहे मुताबिक व्यवस्थाएं और इंतजाम करने की अपने तई पूरी कोशिशें कीं, इसलिए ही हम कोविड-19 की दूसरी लहर पर काबू पाने जैसा,आज का दिन देख पा रहे हैं। अब ऐसे में हम अगर चिकित्सकों को भगवान मानकर उनसे बेहतर स्वास्थ्य का वरदान चाहते हैं तो उसमें कुछ भी अन्यथा नहीं है। और जब हमें डॉक्टरों को भगवान मानने में अभी भी कोई एतराज नहीं है तो फिर और किसी को ऐतराज़ क्यों होना चाहिए..?

                                            
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