अगर यह चेतना ईश्वर है तो यही ज्ञात होता है कि ईश्वर भी सर्वव्यापी है. वह फूलों, पेड़ों, जानवरों, नदियों, हवाओं, बादलों की गर्जन में, चिड़ियों के गीतों में, बहार में, मोर के नृत्य में, हम सभी में है. हम सभी परस्पर हैं.
स्पिरिचुयल एकॉलजी, धर्म, संरक्षण और शिक्षा के क्षेत्र में एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जो यह स्वीकार करता है कि संरक्षण, पर्यावरणवाद और पृथ्वी के संबंध से जुड़े सभी मुद्दों का एक आध्यात्मिक पहलू है. पिछले साल से करोना महामारी के कारण हमारी बाहरी दुनिया बिल्कुल बदल चुकी है और इस बदलाव से हमारा अंतर मन भी कहां अछूता रहा है. जीवन की गति कुछ धीमी पड़ गई है जिससे हम अपने विचारों और प्रकृति के चिंतन का समय मिला है.
इस दौरान जब भी मैं जीवन में तनावों से ग्रस्त हुई, मैंने खुद को प्रकृति के प्रति आकर्षित पाया. मेरे भीतर एक गहरी लालसा जाग उठी थी, घंटों तक घास में लेट कर आसमान और बादलों को देखने की लालसा, समुद्रा की लहरों की तरह अपनी चढ़ती और उतरती सांसों को महसूस करने की लालसा, ऊंचे पेड़ों और पहाड़ों की तरह स्तब्ध रहने की लालसा, नधी की धारा की तरह बहने की लालसा और छोट- छोटे बीजों की तरह अंकुरित होने की लालसा.
प्रकृति की तरफ मेरा प्रेम अब श्रद्धा भाव में बदल रहा था. यह एक जादुई अहसास था. चींटियों और चिड़ियों को अपनी दिनचर्या में मग्न देख मैंने अपने मन की वृत्तियों को छोड़ , वर्तमान में जीना सीखा, हवा में झूमते पेड़ों को देखकर मैंने अपने भीतर के आनंद को जागृत होते महसूस किया. जितना प्रेम मैं प्रकृति से करती, अब उससे भी ज़यादा प्रेम मुझे प्रकृति से अपनी लिए महसूस होने लगा था. अब यही मेरी राह है, जो इस करोना काल में मैंने सीखा और अनुभव किया, इससे मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को परिचित कराना चाहती हूं.
भारत में गौतम बुद्ध और कई संतों ने जंगलों में पेड़ों के तले तपस्या करके, निर्वाण को प्राप्त किया है तो अगली बार आपको कोई बड़ा पीपल का वृक्ष दिखे तो कुछ समय उसके नीचे बैठकर ध्यान ज़रूर लगाएं. शायद ये कुछ पल आपको हमेशा के लिए बदल दें.
राधिका भगत एक वन्यजीव संरक्षणवादी हैं, जिन्होंने पिछले एक दशक में भारत और पड़ोसी देशों में विभिन्न संरक्षण मुद्दों पर काम किया है. वह एक आध्यात्मिक साधक, योग शिक्षक भी हैं.
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