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Photo Courtesy / Sikandar Mishra |
चित्र संख्या - 1 , भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान शिकार किए गए बाघों के साथ लोगों का समूह...
मैंने कई बुद्धिजीवियों, फेसबुक संरक्षणवादी और वन विभाग में कार्यरत लोगों को पर्यटन को दोष देते देखा है, लेकिन हर कोई जानता है कि पर्यटन सभी संरक्षण प्रथाओं में से सबसे महत्वपूर्ण उपकरण साबित हुआ है।
पर्यटक सबसे बड़े संरक्षणवादी हैं, पर्यटन के माध्यम से राजस्व सृजन के माध्यम से कई संरक्षण गतिविधियाँ काम करती हैं। इसका आदर्श उदाहरण होगा, पर्यटक और बार-बार आने वाले आगंतुक छोटा मुन्ना के बारे में पूछा जाना, छोटा मुन्ना को कान्हा टाइगर रिजर्व में लंबे समय से नहीं देखा गया है और सभी वन्यजीव प्रेमी उसके बारे में पूछते रहे हैं और सिस्टम उसे खोजने में नाकाम रहा है, ये पर्यटन की ताकत है...
हमारे जिले में 300 से अधिक बाघ हैं, जिनमें से लगभग 30 से 40 बाघों को हम उन नामों से जानते हैं जो हमें विभिन्न क्षेत्रों में सफारी के दौरान हमारे गाइड, प्रकृतिवादी द्वारा बताए जाते हैं, बाकी 200+ बाघों के बारे में क्या ? क्या आपने कभी उनके बारे में उसी तरह सोचा है जैसे आप मुन्ना , छोटा मुन्ना, बजरंग, DJ, नैना, छोटी मादा, शर्मीली, आदि के बारे में सोचते हैं?
मैं व्यक्तिगत रूप से महसूस करता हूं कि प्रत्येक वन क्षेत्र को पर्यटन के लिए खोला जाना चाहिए, ताकि लोग वन्यजीवों का भ्रमण और निगरानी कर सकें, यह जिम्मेदारी तय करता है, यह स्थानीय लोगों के लिए राजस्व पैदा करता है और वन्यजीवों और जंगलों की रक्षा करता है। कम निगरानी वाले बंद क्षेत्र अधिक खतरनाक हैं, पर्यटक वन विभाग को जंगलों की निगरानी में मदद करते हैं। सीमित संसाधनों के साथ वन विभाग प्रत्येक क्षेत्र की सुरक्षा और निगरानी नहीं कर सकता है, लेकिन दिन में 8 घंटे जंगल में घूमने वाले पर्यटक वन के रक्षक के रूप में कार्य करते हैं, हमारे निकट के सोनवानी वन्यप्राणी अनुभव क्षेत्र में माफियाओं को संरक्षण देने वाले जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी पर मौजूद है जो जंगल की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगाते है, मगर इसकी जानकारी वरिष्ठ अधिकारी के पास होने के बावजूद वे मौन है तो आप कहानी समझ सकते है...
तस्वीर क्लिक करने से बाघों की मौत नहीं हो जाती, मैं खुद फोटोग्राफर हूँ और मैं ये कभी नहीं चाहूंगा की बाघ विचलित हो बल्कि मैं उसकी शांति से तस्वीर प्राप्त कर लेने को सफलता मानूंगा यह समझना चाहिए, हां, लोग कभी-कभी पागलपन का व्यवहार करते हैं लेकिन वे वन्य जीवन से प्यार करते हैं और यह समझ में आता है...
चित्र संख्या एक में दिख रहे लोगों से , चित्र संख्या दो में दिख रहे लोग कहीं बेहतर है..!!.. है ना... बड़ी-बड़ी बातें, नियम पढ़ने में तो अच्छे हैं लेकिन ज़मीनी स्तर पर चीज़ें बहुत कठोर और क्रूर हैं...!
( यह विचार और लेख सिकंदर मिश्रा का है जो एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर हैं। )
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