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मोदी सरकार और किसी की न सही, चेतन भगत की लिखी बात तो सुन ले

जब किसी नेता या सरकार के सामने बहुत विरोध हो रहा हो, उसके फैसलों पर सवाल उठ रहे हों, और पिछले फैसले एक के बाद एक नुकसानदेह साबित हो रहे हों, तो यह वक्त ऐसा रहता है कि अपने दरबार से परे के लोगों की बात भी सुननी चाहिए। और यह बात हम पिछले बरसों में मोदी सरकार के बारे में ऐसे कई मौकों पर लिख चुके हैं जब एनडीए में उसकी भागीदार रही शिवसेना ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या केन्द्र की किसी नीति या फैसले का विरोध किया हो। शिवसेना भाजपा के मुकाबले अधिक उग्र हिन्दुत्ववादी पार्टी रही है, और भाजपा के सबसे पुराने भागीदारों में से एक भी, इसलिए जब तक वह केन्द्र और महाराष्ट्र के गठबंधन में भाजपा के साथ थी, उसकी की गई आलोचना किसी कंपनी या संस्था के भीतर बैठकर काम करने वाले बाहरी ऑडिटर की आपत्ति सरीखी थी, जिसे अनदेखा करना खतरनाक था। अब पिछले दो-तीन दिनों में दो ऐसे लोगों ने मोदी-अमित शाह की ताजा नागरिकता-नीति को लेकर, छात्र आंदोलनों पर सरकार की कड़ी मार को लेकर लिखा है जिस पर सरकार को गौर करना चाहिए। देश के एक वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रकाश वैदिक कोई वामपंथी पत्रकार नहीं रहे हैं, और भाजपा के भी अनगिनत नेताओं से उनके मधुर और अंतरंग संबंध रहे हैं। उन्होंने केन्द्र सरकार के ताजा फैसलों को लेकर खासी आलोचना की है, जबकि उनकी सोच किसी भी तरह से मुस्लिमों से किसी रियायत की नहीं है। 
वेदप्रकाश वैदिक ने लिखा है कि पड़ोसी देशों से भारत आए लोगों को शरण देने के लिए जो शर्त रखी है वह अधूरी है, अस्पष्ट है, और भ्रामक है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया है कि क्या पाकिस्तान से मुस्लिम लोग प्रताडऩा की वजह से छोड़कर दूसरे देशों में नहीं भागते हैं? उन्होंने लिखा- इस कानून के पीछे छिपी साम्प्रदायिकता दहाड़ मार-मारकर चिल्ला रही है, भाजपा ने अपने आपको मुस्लिमविरोधी घोषित कर दिया है, भाजपा जब विपक्ष में थी तब वोट पाने के लिए यह साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण समझ में आता था, पर अब तो वह सत्ता में है। उन्होंने आगे लिखा है कि बंगाल, असम, त्रिपुरा, और पूर्वोत्तर के अन्य प्रांतों में सारे हिन्दू क्यों भड़के हुए हैं? वहां की भाजपा सरकारें क्यों हक्का-बक्का हैं? भाजपा के इस कानून ने देश के परस्पर विरोधी दलों को भी एकजुट कर दिया है। उन्होंने भाजपा के छेड़े हुए नागरिकता के इस ताजा मुद्दे को फर्जी करार दिया है, और सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद की है कि वह इसे असंवैधानिक घोषित करे तो वह भारत को इस निरर्थक और फर्जी संकट से बचा सकता है। 
इसी के ठीक अगले दिन एक अलग पीढ़ी के एक गैरपत्रकार, उपन्यासकार चेतन भगत ने एक बड़ा लेख लिखा है जिसे देखकर पहली नजर में ऐसा लगता है कि किसी और के लिखे लेख में उनका नाम चिपक गया है। वे आमतौर पर हिन्दुत्ववादियों की तारीफ करते दिखते हैं, मोदीभक्त रहते आए हैं, और देश के उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष, और प्रगतिशील लोग उन्हें हिकारत से देखते हैं। वे हिन्दुस्तान के अंग्रेजी लेखकों में सबसे अधिक संख्या में बिकने वाले उपन्यासों के लिए इतने मशहूर हैं कि उन्हें अंग्रेजी का गुलशन नंदा कहकर साहित्यिक-गाली दी जाती है, लेकिन वे सोशल मीडिया पर आए दिन ताजा मुद्दों पर भी कुछ-कुछ लिखते हैं। उनका लिखा हुआ कोई भी ट्वीट याद करें तो वह मोदी की तारीफ से स्तुति के बीच का याद पड़ता है, लेकिन आज का उनका लेख मोदी के बारे में कहता है- हां में हां मिलाने वाले यसमैन से घिरा नेतृत्व। उन्होंने राजनीति के पाठकों को इस लेख से हक्का-बक्का किया है कि चेतन भक्त कहे जाने वाले इस लेखक को क्या हो गया है। और हमें पूरा भरोसा है कि इस लेख के सामने आते ही नरेन्द्र मोदी से लेकर भाजपा और संघ के लोग भी हैरानी और सदमे के बीच कहीं होंगे। लेकिन चेतन भगत की लिखी हुई बातों को अगर मोदी सरकार नहीं पढ़ेगी, या उस पर गौर नहीं करेगी, तो वह नुकसान छोड़ कुछ नहीं पाएगी। उन्होंने नोटबंदी, जीएसटी, 370 के खात्मे, और अब नागरिकता संशोधन कानून इन सभी की आलोचना करते हुए इनसे हुए नुकसान गिनाए हैं, और लिखा है कि नागरिकता संशोधन कानून को किसी अच्छे समय, अच्छे शब्दों, आम राय बनाने के लिए लंबे जनविमर्श, और स्पष्ट तौर पर कहें तो अच्छे इरादे की जरूरत थी। इस आखिरी शब्द से यह साफ है कि भाजपा के इस सबसे पसंदीदा अंग्रेजी उपन्यासकार नौजवान को  नागरिकता संशोधन के पीछे एक बदनीयत दिख रही है जिसे वे खुलकर लिख रहे हैं। उन्होंने यह भी लिखा कि भाजपा के बड़े फैसलों का नियमित अंतराल में ऐसा विरोध होते चल रहा है। चेतन भगत ने यह भी लिखा कि हिन्दू-मुस्लिम के सामाजिक समीकरणों से बार-बार छेड़छाड़ भारत जैसे देश में कभी भी एक अच्छा विचार नहीं रहा। उन्होंने लिखा कि अगस्त में 370 हुआ, करीब एक महीने पहले राम मंदिर का फैसला हिन्दुओं के पक्ष में आया, क्या मुस्लिमों को एक और चोट देना जरूरी था ?
इसके बाद चेतन भगत ने गिनाया है- क्या भाजपा को नहीं पता है कि अर्थव्यवस्था की विकास दर छह सालों में सबसे कम है? क्या वह नहीं जानती कि बार-बार हिन्दू-मुस्लिम के सामाजिक ताने-बाने को छेडऩे से निवेशकों पर गलत प्रभाव पड़ता है, और यह हमारे विकास पर असर डालता है? उन्होंने लिखा कि नेतृत्व को यसमैन घेरे हुए हैं, समझदार बातों, प्रतिभाशाली और स्वतंत्र राय रखने वालों को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है। भाजपा की लगातार हो रही राजनीतिक विजय ने इस संस्कृति को इतना अधिक कड़ा कर दिया है कि इसे बदलना मुश्किल है। लेकिन अगर इसे न बदला गया, तो एक दिन ऐसी स्थिति आ सकती है कि चारों तरफ आग ही आग होगी। 
इन दो पत्रकार-लेखकों की बातों को यहां लिखकर हम यही कहना चाहते हैं कि मोदी सरकार को कम से कम ऐसे लोगों की बात तो सुननी चाहिए जो कि या तो उनके खुद के हैं, हिमायती हैं, या कम से कम मोदीविरोधियों के पैरोकार नहीं हैं। देश भर के विश्वविद्यालयों में चल रहे आंदोलनों की गिनती को घटाकर बताने से हकीकत नहीं छुपेगी, और इस देश को ऐसी आग में झोंकना भी ठीक नहीं है जो अगली पांच-दस सरकारों पर भी भारी पड़ेगी ।  
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