उत्तरप्रदेश में एक पत्रकार की ट्वीट को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए अपमानजनक करार देते हुए यूपी की पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था, और आज सुप्रीम कोर्ट ने इस पर राज्य को फटकार लगाते हुए उसे तुरंत रिहा करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस ट्वीट को पसंद नहीं किया है, लेकिन इस पर कानूनी कार्रवाई को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा है कि उसे गिरफ्तार क्यों किया गया? किन धाराओं के तहत गिरफ्तारी हुई? अदालत ने पूछा कि इसमें शरारत क्या है? उल्लेखनीय है कि योगी के दफ्तर के बाहर एक महिला ने टीवी कैमरों के सामने खुलकर यह कहा था कि पिछले एक बरस से योगी से उनकी फोन पर बात हो रही है, जिसमें पे्रम की बात भी शामिल है, और अब वह योगी के साथ रहना चाहती है। इसके वीडियो को दिखाने वाले टीवी चैनल के पत्रकारों को भी यूपी पुलिस ने गिरफ्तार किया है, और इसे ट्विटर पर पोस्ट करने वाले प्रशांत कनौजिया नाम के इस पत्रकार को भी। इस पत्रकार की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, और उस पर दो जजों की बेंच ने यह आदेश दिया है। TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें
लोगों को याद होगा कि इसके पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी की एक गढ़ी गई मजाकिया तस्वीर को पोस्ट करने पर बंगाल की एक भाजपा नेता को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, और उस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत उसकी रिहाई का आदेश दिया था। और भी कुछ राज्यों में ऐसे मामले सामने आए हैं। इन दिनों सोशल मीडिया की वजह से पत्रकार भी अपने पेशेवर माध्यम से बाहर आकर भी लिखते हैं, पोस्ट करते हैं। दूसरी तरफ बहुत से स्वतंत्र पत्रकार भी सिर्फ सोशल मीडिया पर, या किसी वेबसाईट पर लिखते हैं। इन दोनों तबकों से परे अनगिनत लोग जो कि गैरपत्रकार हैं वे भी पत्रकारों से बेहतर भी लिखते हंै, और सोशल मीडिया पर अधिक मशहूर भी रहते हैं। कुल मिलाकर इंटरनेट और कम्प्यूटर ने मिलकर सोचने-समझने वाले भले और बुरे सभी किस्म के लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की एक नई ऊंचाई दे दी है, और इसके चलते सत्ता पर बैठे लोगों के लिए यह मुमकिन नहीं रह गया है कि वे एक-दो दर्जन मीडिया घरानों को प्रभावित करके तमाम आलोचनाओं से बच जाएं। ऐसे में सोशल मीडिया पर सक्रिय बहुत से गैरपत्रकारों को भी गिरफ्तार किया जा रहा है, और एक खबर के मुताबिक पिछले दो-चार दिनों में ही उत्तरप्रदेश में ऐसी कई गिरफ्तारियां हुई हैं।
दरअसल सत्ता का एक साईड इफेक्ट यह होता है कि उसका बर्दाश्त खत्म हो जाता है। ऐसे में अनगिनत लोगों को दबाव में लाने के लिए भी सत्ता के लोग कानूनों का इस्तेमाल करके ऐसे खोखले केस गढ़वाते हैं जो कि अदालत में जरा भी न टिकने वाले रहते हैं, लेकिन उनका मकसद अदालत में कुछ साबित करना नहीं रहता है, एक कानूनी-आतंक कायम करना रहता है। सुप्रीम कोर्ट का यह रूख देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने वालों के लिए हौसला लेकर आया है, और यह राज्य सरकारों या केंद्र सरकार के लिए एक चेतावनी भी लेकर आया है कि थानों के बेदिमाग और बददिमाग डंडों को चलाकर वे अपनी आलोचना के खिलाफ एक आतंक पैदा नहीं कर सकते। सभी राज्य सरकारों को इसे एक चेतावनी की तरह लेना चाहिए। खुद राहुल गांधी ने इस पर जो कहा है उसे भी देखना चाहिए- 'अगर मेरे खिलाफ झूठी या मनगढ़ंत रिपोर्ट लिखने वाले या आरएसएस/बीजेपी प्रायोजित प्रोपैगंडा चलाने वाले पत्रकारों को जेल में डाल दिया जाए तो अधिकतर अखबार/न्यूज चैनलों को स्टाफ की गंभीर कमी का सामना करना पड़ सकता है। यूपी के सीएम का व्यवहार मूर्खतापूर्वक हैं और गिरफ्तार पत्रकारों को रिहा करने की जरूरत है।'