मध्यप्रदेश के देवास के जंगलों में एक दर्जन से ज्यादा बंदरों की लाश मिली है। वहां गांव के लोगों ने वन विभाग को बताया तो अफसरों को पता लगा। अब अंदाज है कि जंगलों में पानी न रह जाने की वजह से बंदरों के बीच आपस में लड़ाई हुई होगी, और उसी में जख्मी होकर मरने वाले बंदरों की लाशें बिखरी मिली हैं। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में जगह-जगह प्यासे हिरण जंगलों से निकलकर गांवों में पहुंच रहे हैं, और कहीं गांव वाले उन्हें मार रहे हैं, तो कहीं गांव के कुत्ते घेरकर हिरणों को मार रहे हैं। इनमें से बहुत कम खबरें पुलिस या वन विभाग तक पहुंचती हैं, क्योंकि गांव को लगता है कि कड़े नियम-कायदों के चलते लोगों की गिरफ्तारी हो जाएगी। जहां तक मुमकिन होता है, जंगलों के किनारे बसे हुए गांव ऐसे मामलों को दफन करने की पूरी कोशिश करते हैं, क्योंकि न तो जंगल अफसरों पर उनका भरोसा है, और न ही पुलिस पर। छत्तीसगढ़ के कई इलाकों से खबर आती है कि पानी की तलाश में, या खाने की तलाश में भालू गांव में घुस जा रहे हैं, कुएं में गिर जा रहे हैं, या पेड़ पर चढ़कर लोगों से अपनी जान बचा रहे हैं। भूख और प्यास से बेहाल जानवर जंगलों में जगह-जगह इंसानों से सामना होने पर अपनी जान बचाने की दहशत में उन पर हमले कर रहे हैं, और बहुत से लोग मारे जा रहे हैं। इन सबके अलावा इन दिनों छत्तीसगढ़ के जंगलों में जो सबसे बड़ा खतरा घूम रहा है, वह धरती के सबसे बड़े प्राणी हाथी का है। हाथी आए दिन कहीं न कहीं किसी को कुचल रहे हैं, किसी घर को तोड़ रहे हैं। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में आज दर्जन भर हिरणों की लाश मिली है। जंगल में इनके पीने के पानी के गड्ढों में यूरिया घोलकर शिकारियों ने उसे जहरीला बनाया, और जंगल अफसरों का मानना है कि इसी पानी को पीकर हिरणों की मौत हुई है। TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें
छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों में हाथियों के आतंक को देखें तो एक बात बड़ी साफ समझ आती है कि सरगुजा और कोरबा जैसे इलाकों में हाथियों ने जगह-जगह इंसानों को मारा है। लेकिन महासमुंद और उसके आसपास के इलाकों में हाथियों ने डेरा जरूर डाला है, लेकिन आमतौर पर उन्होंने इंसानों को नहीं मारा है, या ऐसी घटनाएं बहुत कम हुई हैं। इन दोनों इलाकों के बीच जानकार लोग एक फर्क बताते हैं कि जहां हाथियों के खाने के लिए पेड़ों के पत्ते और चारा पर्याप्त हैं, वहां वे आक्रामक नहीं हो रहे हैं। लेकिन जहां पर उन्हें खाने-पीने नहीं मिलता, वहां वे भूख-प्यास के चलते आक्रामक और हिंसक हुए जा रहे हैं। यह एक बड़ा साफ-साफ फर्क बताता है कि जंगली जानवरों के खाने-पीने के साधनों को भी, उनके लिए हरियाली या शिकार करने के इलाकों को भी जब इंसान बर्बाद कर रहे हैं, जंगलों की अवैध कटाई कर रहे हैं, तो जानवर आबादी की तरफ बढ़ रहे हैं, मकान और फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं, और सामने पडऩे पर इंसानों की जिंदगी भी जा रही है।
छत्तीसगढ़ जंगलों से भरा हुआ एक राज्य था, और सत्ता पर बैठे हुए लोगों की करवाई हुई अवैध कटाई, या लकड़ी के कारोबारियों के साथ अफसरों की मिलीभगत के चलते जंगल घटते चले गए। ना जाने कौन से उपग्रह फोटो दिखाकर यह साबित किया जाता है कि छत्तीसगढ़ में जंगल बढ़े हैं, जबकि चारों तरफ हकीकत यह है कि जंगल घट गए हैं, और जंगली जानवर बेघर हो गए हैं। वन विभाग को जंगली जानवरों की रखरखाव के लिए, उनके लिए पानी का इंतजाम करने के लिए जो बड़ा बजट केन्द्र और राज्य से मिलता है, वह वन विभाग के आम और व्यापक भ्रष्टाचार में बंट जाता है, और जंगली जानवर अफसरों का मुंह ताकते रह जाते हैं। राज्य सरकार को अपने इस एक सबसे ही भ्रष्ट विभाग को सम्हालना चाहिए, और वन्य प्राणी संरक्षण का जिम्मा किसी ऐसे अफसर को देना चाहिए जिसमें ईमानदारी कुछ बाकी हो, और जो संवेदनशील भी हो। आज जैसी हालत है, उसके चलते जंगल तो रातों-रात खड़े नहीं होंगे, जंगली जानवर जरूर अपनी भूख-प्यास को लिए हुए गांव-कस्बे और शहर तक आकर खड़े हो जाएंगे। पूरे प्रदेश में जगह-जगह पशुप्रेमी लोग वन विभाग के भ्रष्टाचार को लेकर सरकार और हाईकोर्ट में खड़े ही रहते हैं, लेकिन यह विभाग अब आरोपों के प्रति संवेदना खो चुका है, ठीक उसी तरह जिस तरह वह जंगलों के लिए, पेड़ों के लिए, और जंगली जानवरों के लिए संवेदना खो चुका है। यही वजह है कि इस विभाग में अभी पिछली रमन सरकार के चलते हुए एक-एक वन संरक्षक की पोस्टिंग के लिए एक-एक करोड़ रूपए का लेन-देन होने की चर्चा रहती थी, और नीचे के अफसरों में भी उसी अनुपात में कम लेन-देन से उन्हें कमाने वाली कुर्सियां मिलती थीं। ऐसे भ्रष्ट विभाग को कम भ्रष्ट बनाना भी मौजूदा सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। और आज की सरकार इस बात को भी ठीक से समझ ले कि भ्रष्टाचार केवल पिछली सरकार का खबरों में नहीं आता था, आज की सरकार भी अगर उसी रास्ते चलेगी, तो लोगों की नजरें आज भी सरकार पर हैं, और यह भी मानकर चलना चाहिए कि भूखे-प्यासे जंगली जानवरों की बद्दुआ भी कम असर नहीं रखती।