भाजपा की ओर से प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल लोकसभा क्षेत्र का प्रत्याशी बनाने के साथ ही यह तय हो गया कि भाजपा के लिए 2019 के चुनाव में विकास, रोजगार, किसान जैसे मुद्दों से कहीं ज़्यादा अहमियत धार्मिक ध्रुवीकरण की है। साथ ही यह भी नज़र आ गया कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई की भाजपा की प्रतिबद्धता कितनी खरी है। याद रहे कि मध्यप्रदेश के भिंड ज़िले के लहार में जन्मी प्रज्ञा सिंह 2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में गिरफ़्तारी से चर्चा में आई थी। इस धमाके में जो मोटरसाइकिल इस्तेमाल की गई थी, एनआईए की रिपोर्ट के मुताबिक वह प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर थी। इस जांच के बाद प्रज्ञा को गिरफ़्तार किया गया और उस पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) लगाया गया। मामले की शुरुआती जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते ने की थी, जिसे बाद में एनआईए को सौंप दी गई थी। एनआईए के आरोपपत्र में उसका नाम भी डाला गया, लेकिन एनआईए ने जब मई 2016 में अपनी अंतिम रिपोर्ट दी तो उसमें 10 अभियुक्तों के नाम थे और इस चार्जशीट में प्रज्ञा सिंह को दोषमुक्त बताया गया था और उस पर लगा मकोका इसके बाद हटा लिया गया।
एनआईए कोर्ट ने प्रज्ञा को जमानत तो दे दी लेकिन उसे दोषमुक्त नहीं माना। दिसंबर 2017 में दिए अपने आदेश में अदालत ने प्रज्ञा पर यूएपीए (अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट) के तहत मुकदमा जारी रहने के निर्देश दिए। प्रज्ञा पर अब भी चरमपंथ के खिलाफ बनाए गए क़ानून यूएपीए की धारा 16 और 18, आईपीसी की धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 302 (हत्या), 307 (हत्या की कोशिश) और 326 (इरादतन किसी को नुकसान पहुंचाना) के तहत मामला चल रहा है।वह फ़िलहाल ज़मानत पर बाहर है । वह तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर उन्हें झूठे मामले में फंसाने का आरोप लगाती है । अब उन्हीं दिग्विजय सिंह के सामने भाजपा ने उसे खड़ा किया है।
भोपाल सीट पिछले तीन दशकों से भाजपा का गढ़ रही है और यहां जनसंघ का भी अच्छा-खासा प्रभाव है। कांग्रेस की यहां पकड़ मज़बूत नहीं है। इन चुनावों में कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को भोपाल सीट से प्रत्याशी बनाया। श्री सिंह ने अरसे से कोई चुनाव नहीं लड़ा, और भोपाल उनका निर्वाचन क्षेत्र कभी नहीं रहा। वे हमेशा राजगढ़ से ही मैदान में उतरे और भोपाल में मुख्यमंत्री बनकर ही रहे। वे अपने बयानों के कारण कई बार विवादों में पड़े हैं, खासकर संघी आतंकवाद पर दक्षिणपंथी तबका उन्हें आड़े हाथों लेता रहा है। कांग्रेस ने उन्हें भोपाल सीट से खड़ा कर राजनैतिक विश्लेषकों को अचरज में डाल दिया था और भाजपा भी पसोपेश मेंं पड़ गई थी कि उनके मुकाबले किसे उतारे? यूं तो शिवराज सिंह चौहान, कैलाश विजयवर्गीय, नरेेन्द्र सिंह तोमर, मौज़ूदा सांसद आलोक संजर जैसे नामों पर चर्चा चल रही थी, लेकिन अपनी इस सुरक्षित सीट पर भाजपा हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही थी। खासकर हाल ही में विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद वह कोई जोख़िम नहीं लेना चाहती थी। इसलिए सोची-समझी रणनीति के तहत प्रज्ञा सिंह को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है, ऐसा नजर आ रहा है।
प्रज्ञा ने अपना नाम घोषित होने के कुछ घंटों पहले ही भाजपा की सदस्यता ली। उसकी छवि कट्टर हिंदुत्व वाली रही है और भाजपा शायद इसी का लाभ लेना चाहती है। दिग्विजय सिंह कई बार अपने हिंदुत्व और हिंदू धर्म की वकालत कर चुके हैं, लेकिन उसमें कट्टरता के वे खिलाफ हैं। अब प्रज्ञा सिंह के आने से कहा जा सकता है कि भोपाल सीट पर मुकाबला नर्म हिंदुत्व बनाम गर्म हिंदुत्व का रहेगा। प्रज्ञा इसे धर्मयुद्ध बता रही है, धर्मयुद्ध की उसकी व्याख्या क्या है, यह समझना कठिन नहीं है। लेकिन इतना तय है कि इस बार भोपाल सीट पर धार्मिक ध्रुवीकरण जमकर होगा और हार-जीत में यहां के 5 लाख से भी ज़्यादा मुसलमान निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। धर्म के साथ-साथ कायस्थ, राजपूत जैसे जातीय वोट भी महत्वपूर्ण साबित होंगे, इसके साथ ही आदिवासी मतदाताओं का रूझान किसकी ओर रहेगा, यह देखना दिलचस्प होगा। भोपाल के मतदाताओं ने पिछले 30 सालों से भाजपा को बढ़त दी है, लेकिन इस तरह से स्पष्ट धार्मिक विभाजन वाली स्थिति कभी नहीं बनी। गंगा-जमुनी तहजीब वाला भोपाल अपने कदम किस ओर बढ़ाता है, यह चुनावी नतीजों से साफ़ हो जाएगा। [साभार - देवेंद्र सुरजन जी के फेसबुक वाल से]