अभी तीन दिन पहले देश के बलात्कार-राजधानी सरीखे मध्यप्रदेश से एक ऐसी खबर आई कि जिसके बाद इंसानियत, रिश्ते-नातों, इन सभी से भरोसा पूरी तरह उठ ही जाता है। ऐसा भी नहीं कि ऐसी कोई वारदात पहली बार हुई हो, लेकिन इसकी भयावहता अनोखी है। एक नाबालिग बच्ची के साथ उसके तीन भाईयों और एक चाचा ने बलात्कार किया। जब उसने इसकी शिकायत पुलिस में करने की बात कही, तो उसकी चाची ने हंसिए से उसका सिर काटकर अलग कर दिया। इन दो वाक्यों के बाद अधिक खुलासे की जरूरत बचती नहीं है। जम्मू के कठिया में तो एक खानाबदोश बच्ची के साथ बलात्कार करने वाले लोगों में पुलिस भी थी, और एक बाप-बेटे भी थे। लेकिन इस मामले में तो तीन भाई, एक चाचा, और एक चाची!
इधर छत्तीसगढ़ में भी लगातार कोई न कोई ऐसी खबर आ रही है जिसमें परिवार के भीतर ही भाई बहन पर गोली चला रहा है, पत्नी पति की हत्या कर रही है, पति पत्नी को मार रहा है, और बाप बेटे की हत्या कर रहा है, बेटा बाप को मार डाल रहा है। इन सबको देखकर यह लगता है कि पुराने जमाने से जो कहावत चली आ रही है कि अपना खून अपना ही होता है, या फिर हिन्दी फिल्मों में जो एक घिसापिटा डायलॉग चले आ रहा है कि उसकी रगों में भी वही खून दौड़ता है जो कि मेरी रगों में दौड़ता है, ये तमाम बातें लतीफा लगने लगती हैं। फिर जहां तक इंसानियत की बात है, तो हम बार-बार यह लिखते हैं कि लोग अपने भीतर की अच्छी खूबियों को तो इंसानियत कह लेते हैं, और उन्हें अपना मान लेते हैं। लेकिन अपने भीतर की हिंसक-खामियों को वे हैवानियत कहकर एक अवांछित बच्चे की तरह किसी और का बताने लगते हैं। हकीकत यह है कि यह तथाकथित इंसानियत, और यह गाली की तरह इस्तेमाल होने वाली हैवानियत, दोनों ही हर इंसान के भीतर मौजूद हैं, मौलिक हैं, और इंसानों की अपनी हैं। अब लोगों की भलमनसाहत यही होती है कि वे अपने भीतर के हैवान को काबू में रखकर, दबाकर, उसे खत्म करके अपने भीतर के इंसान को ताकतवर बनाते चलते हैं, और समाज को बेहतर बनाते हैं। दूसरी तरफ बुरे लोगों के भीतर हैवान वाला हिस्सा सिर चढ़कर बोलता है, और उनके भीतर के भले इंसान वाले हिस्से को कुचलकर रख देता है।
परिवार के भीतर की इस तरह की जानलेवा या आत्मघाती हिंसा एक मानसिक रूप से बीमार समाज का संकेत है। जिस तरह बीमारी के कुछ लक्षण होते हैं, कि बदन तपता है, या खांसी आती है, या चक्कर आता है, ठीक उसी तरह जान ले लेने, या जान दे देने, किसी नाबालिग या मासूम बच्ची से बलात्कार कर लेने की हिंसा जब एक वारदात की शक्ल में सामने आती है, तो उसका यह मतलब भी रहता है कि वह समाज के बदन के भीतर कई ऐसी छोटी-छोटी हिंसक और हैवानी वारदातों की शक्ल में जारी रहती है, जिंदा रहती है, जो कि खबरों में नहीं आ पातीं। ऐसी वारदातें परिवार के भीतर ही दबा दी जाती हैं, बर्दाश्त कर ली जाती हैं, या माफ कर दी जाती हैं। लेकिन चर्चा में आने वाली हर वारदात के पीछे हजार-हजार ऐसी और छोटी-छोटी वारदातों की बुनियाद रहती है जिन पर बड़ी वारदात की इमारत खड़ी होती है, और पुलिस या अदालत तक पहुंचने पर वह दिखती है। कुल मिलाकर आज की बात का मकसद यह है कि ऐसी हिंसा से भरा हुआ समाज सिर्फ एक परिवार के हिंसक होने का लक्षण नहीं है, वह समाज के बड़े हिस्से के बीमार या हिंसक होने, या दोनों ही होने का सुबूत है। ऐसे जुर्म का पुलिस जांच और अदालत के रास्ते जेल में इलाज इसलिए काफी नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा तो महज उतने ही लोगों के साथ हो सकता है जितने लोग पकड़ में आते हैं। आज जब दुनिया भर में यह चर्चा चल रही है कि कौन सा देश कितना खुश रहता है, तो यह समझने की जरूरत है कि पारिवारिक और सामाजिक सुरक्षा पाकर और हिंसा से बचे रहकर लोग कितने खुश रह सकते हैं। मानसिक रूप से बीमार या हिंसक को मानसिक परामर्श या मनोचिकित्सा की सलाह दी जाती है। लेकिन हिन्दुस्तान की तरह जो मानसिक रूप से बीमार और हिंसक समाज है, उसके लिए कोई डॉक्टरी नुस्खा नहीं है। दिक्कत यह है कि साम्प्रदायिक या राजनीतिक कारणों से, चुनावी या कारोबारी वजहों से जिस तरह नफरत और हिंसा का खौलता लावा पूरे देश में फैलाया जा रहा है, उससे महज चुनिंदा किस्म की हिंसा नहीं बढ़ती, उससे कई किस्म की और हर किस्म की हिंसा बढ़ती है। आज इस देश में अगर परिवार के भीतर भी एक-दूसरे से रिश्तों में देह के भीतर का हैवान फैसले ले रहा है, हिंसा कर रहा है, तो इस हैवान को बढ़ावा देने में देश की राजनीतिक नफरत भी जिम्मेदार है, और साम्प्रदायिक नफरत भी। इन दो बातों का रिश्ता जोडऩा कुछ लोगों को एक अटपटी बात लगेगी, लेकिन समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के जानकार इन बातों को जानेंगे कि धर्मान्धता ने हाल के बरसों में कुछ मुस्लिम देशों में ऐसी-ऐसी हिंसा करवाई है जो कि उन्हीं लोगों के धर्म में सबसे बुरी सजा के लायक करार दी गई है। जब किसी देश या समाज की सोच में नफरत और हिंसा की बोतलों को सुई से दिल-दिमाग की रगों में डाला जाता है, तो फिर वैसे दिल-दिमाग अपने काबू के बदन से कई किस्म की हिंसा करवाते हैं।