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यह हिंसक सोच कश्मीर के साथ खत्म नहीं होगी

देश के सबसे कट्टर हिन्दू राज्य उत्तरप्रदेश से कल दो खबरें आई हैं, एक में एक सरकारी बैठक में भाजपा का एक सांसद भाजपा के ही एक विधायक को जूतों से पीटते दिखता है, और महिलाओं की मौजूदगी वाली इस बैठक में इन दोनों निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के बीच एक-दूसरे की मां-बहन के लिए गंदी गालियां गूंजती हैं। दूसरी खबर कुछ और भयानक है, और वह बताती है कि किस तरह एक हिन्दू संगठन के भगवाधारी नौजवान राजधानी लखनऊ की सड़क किनारे मेवा बेचते हुए एक कश्मीरी नौजवान को लाठियों से पीटते हैं, और उसकी वीडियोग्राफी करके सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं, कश्मीरियों को धमकी लिखते हैं, और कश्मीर के लोगों को एक चेतावनी भेजते हैं। आक्रामक और नफरतजीवी ऐसे धर्मान्ध और साम्प्रदायिक लोग इस हिंसा पर गर्व करते हुए अपने नाम और चेहरे के साथ इस वीडियो और तस्वीरों को आगे बढ़ाते हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह पिछले भाजपा राज में राजस्थान में एक कट्टर हिन्दू एक मुस्लिम को मार-मारकर जलाता है, और हत्या का वीडियो गर्व के साथ पोस्ट करता है। कुछ उसी किस्म की लेकिन कम दर्जे की हिंसा योगी की राजधानी से निकलकर आई है, और इस बार यह नफरत एक मजहब को शिकार नहीं बना रही, एक प्रदेश को भी शिकार बना रही है, उस कश्मीर को शिकार बना रही है जिसके बारे में ऐसे ही धर्मान्ध और राष्ट्रवादी हिन्दू यह नारा लगाते आए हैं कि कश्मीर मांगोगे तो चीर देंगे। दूसरी तरफ ऐसे चहेते कश्मीर से आए हुए फेरीवालों को मारकर उन्हें बाकी हिन्दुस्तान से अलग-थलग करने की यह साजिश मासूम नहीं है, बल्कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दोनों तरफ के, दो अलग-अलग धर्मों के कट्टरपंथी-आतंकी इस साजिश में भागीदार हैं जिससे कश्मीर को अलग-थलग किया जा सके।
अब सवाल यह उठता है कि जिस भाजपा की अगुवाई वाली सरकार देश में है, उसी भाजपा की सरकार उत्तरप्रदेश में है। ऐसे में यह पार्टी पूरी तरह जवाबदेह है कि उसके राज में ऐसी हिंसा कैसे हो रही है? ऐसा पहले भी भाजपा-राज में बार-बार, जगह-जगह हुआ है, और हिंसा का निशाना अमूमन मुस्लिम रहते आए हैं, और अब मुस्लिमों के भीतर भी कश्मीरी मुस्लिम इसका शिकार हैं। यह सिलसिला कश्मीर को बाकी हिन्दुस्तान के साथ जोडऩे का नहीं है, तोडऩे का है। कहीं कश्मीरी छात्रों को मारा जा रहा है, तो कहीं कश्मीरी कपड़े बेचने वाले छोटे दुकानदारों को पीटा जा रहा है। कुछ ही दिन हुए हैं जब बिहार की राजधानी पटना में ऐसी ही हिंसा सामने आई थी, और यह याद रखने की जरूरत है कि उस बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन में भाजपा भागीदार है। ऐसे कई मामलों के सामने आने के बाद भी जब प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री का मुंह इन पर खुलता नहीं है, तो यह भी लगता है कि यह मौन सहमति जैसा माहौल है, और कम से कम हमलावर लोग तो इसे मौन सहमति मानते ही हैं।

जो लोग कश्मीर को महज एक मुस्लिम-बहुल राज्य मानकर चल रहे हैं, उनको यह भी समझना चाहिए कि पाकिस्तानी फौजों से लेकर पाकिस्तान से आने वाले आतंकियों तक का पहला हमला झेलने वाले दो राज्यों में से एक कश्मीर है। और अगर कश्मीर को हिन्दुस्तान के बाहर धकेलने की कोशिशें जारी रहीं, तो पाकिस्तानी फौजें कुछ सौ किलोमीटर भीतर तक पहुंच जाएंगी, और वह हिन्दुस्तान के लिए एक सबसे बड़ा फौजी खतरा रहेगा। एक धर्म से नफरत बढ़ते-बढ़ते एक प्रदेश से नफरत तक पहुंच गई, लेकिन यह याद रखना चाहिए कि जब अपने लोगों से नफरत पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती है, दो दुश्मनों को मौका मिलता है कि नफरत के शिकार लोगों में से कुछ को हमलावर बना दिया जाए, कुछ को आतंकी बना दिया जाए, और बहुतों को पत्थरबाज बना दिया जाए। बाकी हिन्दुस्तान के जिन लोगों को कश्मीर को खतरनाक बनाने में कोई दिक्कत नहीं लगती है, उन्हें कश्मीर में सुरक्षा बलों की तैनाती पर होने वाले खर्च का अंदाज नहीं है, और कश्मीर हाथ से निकल जाने पर फौज पर बढऩे वाले खर्च का अंदाज भी नहीं है। राष्ट्रवाद के फतवे अक्ल पर ऐसा मोटा परदा डाल देते हैं कि लोगों को न कुछ दिखता, न सूझता, और हिसाब करना तो दूर की बात रही। इसलिए इस देश में सामने खड़े हुए चुनाव को देखते हुए ऐसा धार्मिक ध्रुवीकरण आत्मघाती होगा जिससे गैरकश्मीरियों को कश्मीरियों के खिलाफ आमने-सामने खड़ा कर दिया जाए, और एक चुनाव जीत लिया जाए। ऐसा ध्रुवीकरण असरदार भी होगा यह भी अंदाज लगाना अभी मुश्किल है। लेकिन चुनाव के मौके पर अगर ऐसा खतरनाक दांव चला जा रहा है, तो उसके नुकसान चुनाव निपटने के साथ खत्म नहीं हो जाएंगे, बल्कि पीढिय़ों तक कायम रहेंगे। उससे नुकसान महज कश्मीर की जमीन पर, महज कश्मीरियों का नहीं होगा, बल्कि पूरे हिन्दुस्तान का होगा क्योंकि जब हिंसा दिल-दिमाग पर हावी हो जाती है, तो वह मारने के लिए महज दलित, महज आदिवासी, महज महिला, महज मुस्लिम, या महज कश्मीरी की मोहताज नहीं होती, वह अपनी ही पार्टी के विधायक को जूतों से मार-मारकर भी तसल्ली पा लेती है।
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