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आधा ज्ञान, दुगुना भरोसा, आज का खतरनाक चलन

मीडिया और इंटरनेट पर रोजाना ही कई खबरें आती हैं कि क्या खाने से कितना फायदा होता है, क्या करने से सेहत कितनी अच्छी रहती है। फिर खाने से परे अलग-अलग किस्म की चीजों को कब और कैसे, किस उम्र में और किस तरह पकाकर खाने से फायदा होता है ऐसी खबरें भी रोज अखबारों से लेकर सोशल मीडिया तक छाई रहती हैं। और इनमें से भी टुकड़े-टुकड़े में जानकारी को लेकर लोग आगे बढ़ाते रहते हैं। लेकिन इसमें से बहुत सी बातें ऐसा आधा सच रहती हैं जो कि झूठ से भी अधिक खतरनाक हो सकती हैं। और फिर लोग हैं कि बिना जांचे-परखे ऐसी बातों को आगे बढ़ाते रहते हैं।
अब इसी बात को लेकर जानकार लोगों में भी भारी मतभेद चलते रहते हैं कि एक इंसान को दिन भर में कम से कम या अधिक से अधिक कितना पानी पीना चाहिए। बहुत से लोग यह मानते हैं कि इंसानी किडनी हर दिन दर्जनों लीटर पानी को निपटा सकती है, इसलिए अधिक से अधिक पीना चाहिए, जो कि पांच-दस लीटर से अधिक नहीं हो सकता। लेकिन कुछ दूसरे चिकित्सा वैज्ञानिक यह मानते हैं कि बहुत अधिक पानी पीने से जान भी जा सकती है, और बदन के भीतर के बहुत से दूसरे तत्व जरूरत से अधिक पानी पीने से उसके साथ बह निकलते हैं, और उनकी कमी बदन में हो सकती है। यह तो सादे पानी की बात हो गई, लेकिन इससे परे जब खाने-पीने की दूसरी चीजों पर जाएं, तो वैज्ञानिक निष्कर्षों में बहुत किस्म की विविधताएं हैं।
अलग-अलग रिसर्च से निकाले गए ऐसे निष्कर्ष इतने किस्म की खास स्थितियों पर लागू होते हैं कि उनको दूसरी स्थितियों पर ज्यों का त्यों लागू करना ठीक नहीं होता, लेकिन लोग आधी-अधूरी जानकारी को दुगुने आत्मविश्वास के साथ इस्तेमाल भी कर लेते हैं, और बांट भी देते हैं। कल तक तो लोग किसी पुरानी किताब के पन्ने को देखकर बात को पुरानी मानकर उस पर भरोसा कर लेते थे, लेकिन आज तो फोन और सोशल मीडिया के चलते हुए गांधी और बुद्ध के नाम से भी जो चाहे वह लिखकर बांटा जा सकता है, और बांटा जा रहा है। इसलिए यह समय किसी भी बात पर भरोसा करने के लिए, और उस भरोसे का खुद या दूसरों पर इस्तेमाल करने के लिए, बड़ा खतरनाक है।
लोगों को सेहत से जुड़ी बातों के इस्तेमाल के लिए बड़ी जिम्मेदारी से काम लेना चाहिए। निर्विवाद रूप से जो वैज्ञानिक बातें हैं, उनमें भी एक-दूसरे से बहुत सा विरोधाभास हमेशा से रहते आया है। आयुर्वेद और एलोपैथी, होम्योपैथी, और यूनानी, भारतीय प्राकृतिक चिकित्सा, और दूसरे किसी देश की कोई और चिकित्सा शैली, इन सबमें खान-पान को लेकर, बचाव को लेकर, इलाज को लेकर एक-दूसरे से परस्पर विरोधी बातें हैं। और ऐसे में अगर लोग इन पद्धतियों के टुकड़े-टुकड़े को संपूर्ण ज्ञान मानकर इस्तेमाल करने लगेंगे, तो वह बहुत खतरनाक बात होगी। चाहे मजाक में ही सही, अभी कुछ दिनों पहले इंटरनेट पर एक डॉक्टर के क्लीनिक के एक नोटिस की तस्वीर छपी थी, जिस पर लिखा था-इंटरनेट पर देखकर अपनी बीमारी समझकर आने वाले मरीजों से दुगुनी फीस ली जाएगी।
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