सुप्रीम कोर्ट ने कल एक फैसले में यह साफ किया है कि साथ रहने वाले जोड़ों, लिव इन पार्टनर, के बीच होने वाले शारीरिक संबंध बलात्कार नहीं है। अदालत में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि बलात्कार और सहमति से बनाए संबंध के बीच साफ अंतर है। अगर पुरूष के लिए परिस्थितियां नियंत्रण से बाहर हैं, और वह अपनी लिव इन पार्टनर से शादी नहीं कर पाया, तो दोनों के बीच हुए शारीरिक संबंध को बलात्कार नहीं कहा जा सकता। हालांकि अदालत ने यह भी कहा है कि अदालतों को ऐसे मामलों में सावधानी से जांच करनी चाहिए कि क्या शादी का इरादा था, या फिर दुर्भावनापूर्ण इरादे से झूठा वायदा किया गया था।
हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हम पिछले बरसों में लगातार इस बात पर लिखते आ रहे थे कि प्रेम संबंधों के चलते, या साथ रहने वाले ऐसे जोड़ों के बीच अगर बाद में जाकर किसी वजह से शादी का इरादा बदल भी जाता है, तो पहले हुए देह संबंधों को बलात्कार मानना गलत होगा। जो जोड़े औपचारिक रूप से शादी करके एक साथ रहते हैं, उनके बीच भी कभी-कभी साथ रहने का इरादा बदल जाता है, और उनके बीच तलाक होता है। इसी तरह लिव इन रिलेशनशिप या प्रेम संबंधों में भी समय के साथ कुछ ऐसी खटास आ सकती है कि जोड़े में से कोई एक शादी के इरादे से हट जाए। ऐसे में पहले हुए देह संबंधों पर बलात्कार की तोहमत लगाना जायज नहीं है। जब हमने ऐसी बात लिखी थी, तो बहुत से लोगों ने इसे महिला विरोधी भी करार दिया था। लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस तर्क को सही ठहराता है कि ऐसे संबंधों को आगे चलकर किसी भी वजह से बलात्कार ठहराना जायज नहीं है। आज देश भर में लाखों पुरूष ऐसी ही शिकायतों के आधार पर गिरफ्तार हैं, और उन पर बलात्कार के मुकदमे चल रहे हैं।
29 जून 2014 को इसी जगह इस कॉलम में हमने लिखा था- एक टीवी सीरियल जोधा-अकबर में एक साजिश के तहत एक धूर्त महिला एक भले बुजुर्ग पर बलात्कार की कोशिश का आरोप लगाती है, और तकरीबन सभी लोग उस पर भरोसा भी करते हैं, जबकि आरोप पूरी तरह झूठा रहता है। उसी दौरान यह खबर आई है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल खड़ा किया है कि असफल पे्रम संबंधों के तुरंत बाद अगर उन्हें लेकर बलात्कार की कोई रिपोर्ट लिखाई जाती है, तो उनको कितना भरोसेमंद माना जाए। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह सवाल उठाया कि क्या दो बालिगों के बीच सहमति से चल रहा प्रेम संबंध टूटने के बाद दुष्कर्म का मामला बनता है? इसी तरह का मामला पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में आया था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि दुष्कर्म के केस को महिलाएं हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही हैं। पुरुष को बदनाम करने के अलावा उसे शादी के लिए मजबूर करने के लिए ऐसा किया जा रहा है। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश नहीं दिया था पर हाल में इस तरह से तेजी से बढ़े मामलों पर चिंता जरूर जताई थी। अदालत ने कहा था कि प्रेम संबंधों के टूटने के बाद पुरुष पर शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगा देती हैं। दिल्ली की एक खबर है कि वहां अब पुलिस बलात्कार की ऐसी रिपोर्ट तो लिख लेगी जो कि साथ रहने के बाद कोई एक महिला अपने कल तक के साथी के खिलाफ लिखाने आएगी, लेकिन ऐसी शिकायतों पर साथी आदमी की गिरफ्तारी तुरंत नहीं की जाएगी, और पुलिस के बड़े अफसर से इजाजत लेकर ही ऐसी गिरफ्तारी होगी। अब तक वहां रिपोर्ट होते ही आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाता है।
इसी संपादकीय में उस वक्त हमने लिखा था- इन दोनों-तीनों बातों की चर्चा करने से महिलाओं के हक के लिए लडऩे वाले कई लोग हम पर नाराज होंगे कि हम भी आदमियों की ज्यादती, जुल्म और जुर्म की शिकार औरतों की बात पर शक खड़ा कर रहे हैं, और ऐसे शक को बढ़ावा दे रहे हैं। हमारी ऐसी कोई नीयत नहीं है, लेकिन कानून के तहत महिला की शिकायत को, उसके बयान को काफी वजन मिला हुआ है, और अगर महिलाओं के हक के मामले में कोई कमी है, तो वह कानून पर अमल की कमी है, न कि कानून में कड़ाई की। ऐसे में इंसाफ का तकाजा यही है कि लोगों को सुनवाई का, जांच में अपनी बात को कहने का एक हक मिलना चाहिए, और पहली शिकायत की बुनियाद पर गिरफ्तारी के पहले यह भी सोचने की जरूरत है कि बरसों लंबे प्रेम-संबंधों और साथ रहने की समझ-बूझ पर अगर ऐसा कानूनी खतरा टंगा रहेगा, तो उससे इंसानी रिश्तों पर पडऩे वाला बुरा असर क्या अधिक नुकसानदेह नहीं होगा?
इस मुद्दे पर उस वक्त हमने लिखा था- हम यहां पर महिलाओं की शिकायत पर अब तक आम बनी हुई पुलिस कार्रवाई के सिर्फ एक छोटे पहलू पर बात करना चाहते हैं। जब शिकायत किसी आदमी के साथ लंबे पे्रम-संबंधों, लंबे लिव-इन रिलेशनशिप के बाद सामने आती हो, तो उसे इतने लंबे रिश्तों की पृष्ठभूमि में भी देखना चाहिए। आज न सिर्फ पश्चिमी देशों में, बल्कि दुनिया के अधिकतर देशों में वयस्क जोड़ों के बीच पे्रम-संबंधों के दौरान आपसी सहमति से सेक्स एक आम बात है। ऐसे में अगर महीनों या बरसों के बाद रिश्ते खराब होते हैं, शादी का वायदा पूरा नहीं हो पाता है, नौकरी दिलाने का वायदा पूरा नहीं हो पाता है, तो कल तक का सहमति का सेक्स आज का बलात्कार एकदम से ही मान लेना हो सकता है कि इंसाफ के खिलाफ जाए। बलात्कार के मामलों में महिलाओं के बयान को आदमी के बयान से अधिक वजन देना तो ठीक है, लेकिन इंसाफ के तराजू में कम से कम दो पलड़े होना भी जरूरी है, और आदमी की सफाई के वजन को चाहे कम भी आंका जाए, लेकिन उसे सुनना, और हालातों को देखना, यह भी जरूरी है।
2014 में इस पर हमने लिखा था- हमारी बात कुछ लोगों को मर्दानगी वाले जुल्म और जुर्म का साथ देने वाली लग सकती है, लेकिन हम उस इंसाफ को बचाने के लिए इस गुंजाइश पर चर्चा कर रहे हैं, जिस इंसाफ की नीयत औरत को कुछ अधिक हद तक रियायत देने की है। उस नीयत की हिमायत करते हुए भी हम बयान से परे के बाकी हालात को भी एक नजर देखने की सलाह देने की हिमाकत कर रहे हैं। ऐसा न होने पर जितने भी मामलों में झूठी रिपोर्ट होती है, अदालत में झूठी साबित होती है, उतनी ही हद तक सचमुच जुर्म की शिकार महिलाओं की विश्वसनीयता भी घटेगी। इसलिए इंसाफ का तकाजा आदमी और औरत की बातों को सिर्फ बयान से कुछ अधिक दूर तक देखने का है। कानून अंधा कानून बनकर किसी को राह नहीं दिखा सकता। इसलिए बरस-दर-बरस चले आ रहे पे्रम और देह-संबंधों के बाद अचानक बलात्कार की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट के माथे पर जो बल पड़े हैं, उन्हें देखते हुए इस बारे में चर्चा होनी चाहिए।