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"बस्तर में लाल आतंक की समानांतर सरकार बन रही है, बारूद से बख्तरबंद गाड़ियों को उड़ाना और फिर घायल जवानों की हत्या कर हथियार लूट कर लेजाने की खबर रूटीन की बात हो रही है। नेता इसको कायराना हमला,कड़ी निंदा,कर अपने काम में लग जाते हैं। हर बार दावा किया जाता है नक्सलियों की कमर टूट गयी है,फिर खबर आती है, नक्सली हमले में जवान शहीद हुए।"
लाल आतंक के झंडाबरदार,सोचे,क्या ये जवान शोषक हैं या लुटेरे जो एम्बुस लगा कर हत्या कर रहे हो,ये भी सर्वहारावर्ग से हैं जो घर छोड़ कर आते हैं। बस्तर में भोले गरीब आदिवासी तुम्हारे कारण दोधारी मुसीबत में फंसें हैं। उनको स्वच्छन्द जीने का अधिकार है,पर वे अपने घर में ही खौफजदा हैं। 
मेरा सवाल उनसे है जो छोटी सी बात पर आंदोलन करने सड़क पर उतर आते हैं,मानव अधिकारों की दुहाई देते हैं। मन्दिर-मस्जिद के विवाद पर खून खराबे पर उतरने उद्त्त रहते हैं। कभी एक बार तुम भी नक्सली हमले में शिकार जवानों की शहादत को सलाम करने सड़क पर उतरो, जो तुम्हारे लिए जान हथेली पर ले कर घर से दूर लाल आंतक के खिलाफ खड़े हैं उनका मनोबल बढ़ेगा,उनका गजभर सीना फौलाद का हो जाएगा।
सरकार नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ने,उनको सुरक्षा बल में भर्ती का विशेष अभियान चलाएं, निश्चत पगार मिलेगी और सुरक्षा तो कई गुमराह देश सीमा पर सम्मान पूर्वक तैनात हो जायेगें। हिंसा का यह सिलसिला 20 से 21वीं शताब्दी पहुंच गया और आगे कब तक जारी रहेगा? विश्वयुद्ध का हल भी फील्ड में नहीं टेबल पर निकले हैं,यह तो कुछ नहीं,पर इसके लिए रणनीति बनानी होगी। एक बात और मीडिया से,जब शहीद का ताबूत और अंतिम विदाई का दौर आता है तब जो शब्दों का जादू चलता है है,हकीकत जमीं पर भी देखें, गर्व, फक्र की बात तो ठीक है,पर 'जाके पैर ना फ़टे बुआई वों का जाने पीर पराई।" एक साल बाद देखे शहीद का परिवार कैसा है, जो जो घोषणा नेताजी ने इनके लिए की थीं, वह पूरी हुई या नहीं।
नक्सलियों को फंडिंग न हो, इसके लिए बस्तर के बड़े उद्योगपति और विभागीय अधिकारियों का रुख पर बारीकी से इंटेलिजेंस सतत निगरानी रहे, नोटबन्दी से नक्सलियों का दम क्यो नहीं टूटा? किसी भी आंदोलन को लंबा चलाने की लिए धन की जरूरत होती है। इस आंदोलन के आर्थिक पोषकों को कम ही पकड़ा गया है।ये बड़ी नाकामी है,इस कलेक्शन को काटें, नक्सली हिंसा की मेरुदण्ड टूट जाएगी। 
देश और दुनिया के इतिहास में 31 अक्टूबर कई कारणों से महत्वपूर्ण है 
1875: भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभ पटेल का जन्म हुआ.
1914: ब्रिटेन तथा फ्रांस ने तुर्की के खिलाफ युद्ध की घोषणा की.
1984: भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी.
1996: रासायनिक अस्त्र प्रतिबंध संधि को लागू करने के लिए आवश्यक 65 देशों की मंजूरी मिली
2003: मलेशियाई प्रधानमंत्री महाथिर मुहम्मद के 22 साल लंबे शासन का अंत हुआ.
2005: भारत की प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम का निधन हो गया.
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